सोमनाथ मंदिर दर्शनोपरांत

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भावुक संवाद –

“भावनात्मक संवाद” में आज हम एक भावुक संवाद लेकर आए हैं। श्रावण का पवित्र मास आरंभ हो चुका है, और जैसा कि हम सभी जानते हैं कि यह मास शिव जी को ही समर्पित होता है। इसलिए, आज हम वरिष्ठ कवि और साहित्यकार कमल किशोर राजपूत “कमल” जी की एक ऐसी रचना का पाठ आप सबके समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं, जो उन्होंने सोमनाथ मंदिर के दर्शनोपरांत लिखी थी।
दुख और क्रोध की मिलीजुली अभिव्यक्ति है ये रचना।

सोमनाथ मंदिर दर्शनोपरांत –

एक संवेदनशील हृदय उस पवित्र स्थान पर पहुंचकर छटपटा उठता है क्योंकि वहां क्या कुछ हुआ, ये हम सब जानते हैं। पढ़े कमल किशोर राजपूत जी का शिव जी के साथ अद्भुत संवाद-

शिव जी के साथ अद्भुत संवाद –

ओ शिव
पहली बार, मुझे तुमपे
अजीब विकराल गुस्सा आया।

महेश! तुम तो विध्वंसकारी हो
सर्वोपरि और ताण्डवकारी
त्रिकुटी के मालिक,
ओ विषधारी!
ओ सृष्टि के संहारक!
तुम चुप रहे, क्यों?
आखिर क्यों ?

जब हुआ सोमनाथ पर
आततायिर्यों का बर्बर अत्याचार ,
वो लूटता रहा, तुमको कईं बार,
ओ भोले-भाले ह्रदय वाले
विष पान में मग्न निरंतर
तुम चुप रहे क्यों?
आखिर क्यों ?

तुम्हारे सामने, शाश्वत धरती का ,
मानव प्रेम और संस्कृति का
प्रतीक, दमकता उपहार
मिटता रहा, लुटता रहा
तुम चुप रहे क्यों ?
आखिर क्यों? …..

विकट असमंजस में हूँ
जवाब दो, शिव,
जवाब दो!
रक्षा क्यों नहीं की?
शाश्वत धरोहर की , ….
जवाब दो!…..

सोमनाथ मंदिर –

सोमनाथ का पवित्र मंदिर भारत के गुजरात में वेरावल के प्रभास पाटन नामक स्थान में स्थित है।

यह हिन्दू धर्मानुसार सबसे पवित्र तीर्थ स्थल माना जाता है, शिव जी के बारह ज्योतिर्लिंगों में से इसका प्रथम स्थान है।

सोमनाथ मंदिर का अनेकों बार विध्वंस

अनेक मुस्लिम आक्रमणकारी और शासकों द्वारा इस मंदिर का बार बार विनाश किया गया। पहला आक्रमण 1026 ईस्वी में महमूद गजनवी के हमले से शुरू हुआ। हमारे मंदिर धन संपदा और श्रद्धा विश्वास के केंद्र होते थे, इन्हें नष्ट करके इस्लामी सल्तनतें अपनी शक्ति और प्रभुत्व स्थापित करना चाहती थीं और कई शताब्दियां निकल गई इन्हीं विध्वंसक घटनाओं में।

हमारी सनातन संस्कृति और धर्म को कई बार आघात लगे, लेकिन यह हमारी सनातन की विशेषता है कि हम पर कोई असर नही आ सका।

सोमनाथ मंदिर में धन का खजाना था। इसमें कोई संदेह ही नही कि इसे तोड़कर, लूटकर हमारे अखंड भारत देश को आर्थिक नुकसान पहुंचाने का प्रयास होता रहता था, ऐसे ही नहीं हम सोने की चिड़िया कहलाते थे।

आक्रमणकारी, जिन्होंने सोमनाथ मंदिर पर हमले किये

सबसे पहले महमूद गजनवी ने इस प्रसिद्ध मंदिर पर हमला किया और हज़ारों किलो सोना चांदी लूटकर अफगानिस्तान ले गया।
उसके अतिरिक्त अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति ने 1299 ई. में पुनः इस मंदिर को तोड़ा।
मुहम्मद बिन तुगलक ने 14 वीं सदी में इस मंदिर को खंडित किया।
मुगल शासक औरंगजेब ने 1706 ई. में एक बहुत बड़ा विध्वंस किया और उसने इस मंदिर को गिराकर उस स्थान पर मस्जिद बनाने का आदेश दिया।

मंदिर का पुनर्निर्माण

इस मंदिर का कई बार पुनर्निर्माण भी किया गया। हमारे देश की आज़ादी के बाद इस मंदिर का सबसे महत्वपूर्ण पुनर्निर्माण हुआ।

भारत के पहले ग्रहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने 1947 में इस मंदिर को पुनः बनवाने का संकल्प लिया था। इसका निर्माण कार्य कन्हैया लाल माणिक लाल मुंशी जो उस समय संस्कृति मंत्री थे, उनकी निगरानी में हुआ।
भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 1951 में इस भव्य मंदिर का उद्घाटन किया।

उपसंहार

सोमनाथ मंदिर का इतिहास तो सर्वविदित ही है, परंतु आज इस कविता के साथ इस इतिहास को पुनः जानना आवश्यक है। किस बर्बरता से इस मंदिर के एक नही अनेकों बार विध्वंस किये गए, यह किसी से छुपा नही है।

ऐसे में इस पवित्र स्थल पर जाकर किसी का भी हृदय रो देगा तो एक संवेदनशील कवि हृदय देखिए कितने दुख और आक्रोश में आ गया और शिव जी को अपने समक्ष जानकर उनसे कठोर शब्दो मे वार्तालाप करने लगा। इस कविता की दुख और क्रोध मिश्रित प्रस्तुति को सुनें और दिल से महसूस करें|

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