-डॉ. सत्या सिंह,
(पूर्व पुलिस अधिकारी और मनोवैज्ञानिक)
केरल हाइकोर्ट का जो फैसला आया है, वह न्याय व्यवस्था को हैरान करने वाला है। कैथोलिक चर्च के इतिहास में पहली बार कोई बिशप दोषी पाया गया है। एक नन के साथ लगातार 3 साल तक बलात्कार किया, बिशप 57 साल का है। बलात्कार एक ऐसा अपराध है जो हत्या जैसे अपराध से भी जघन्य है क्योंकि हत्या जिसकी होती है, वह व्यक्ति एक बार ही कष्ट भोगता है, परन्तु बलात्कार जिन का होता है, उनके दुख की तो कोई सीमा नही।
सार्थक संवाद की आवश्यकता –
इसलिए धर्म, समाज, रुतबा, पैसा परिवार…..यह सब कैसे आड़े आते हैं ऐसे आरोपियों की सज़ा माफ करने में ? क्या मजबूरी थी जो बिशप को माफ किया गया ?
मेरे लेख का पहला भाग आप सबने “भावनात्मक संवाद” में पढ़ा, आज जब उसका दूसरा भाग आपलोगों के लिए प्रकाशित हो रहा है, तो मन व्यथित, विचलित और हैरान है कि हम कहाँ जा रहे हैं ? कृपया इस पटल पर एक सार्थक संवाद करिए। अपनी बात रखिए, जिससे हम सब मिलकर कुछ ऐसा कर सकें, जिससे ऐसा अमानुषिक आचरण करने वालों को एक नसीहत मिल सके।
अपराध का सीधा संबंध समाज से –
प्राचीन समय में मनीषियों ने अपनी दैहिक और आध्यात्मिक साधना से भी इसे अनुभूत और प्रमाणित किया था जो कि संतों और बुद्धिजीवियों की बातों में अक्सर हमें सुनने को मिलती हैं । कहा जाये तो सभी अपराध चाहे वे व्यक्ति के विरुद्ध हों या संपत्ति के विरुद्ध मूलत: समाज से ही जुड़े होते हैं ! पर यौन उत्पीड़न, बलात्कार के अपराध, तथा सामान्य छेड़छाड़ से लेकर सामुहिक बलात्कार तक के जो अपराध हैं उनका असर समाज पर बेहद अधिक और तत्काल पड़ता है।
यह अपराध न केवल पीड़ित के घरवालों को ही बल्कि समाज मे जहाँ जहाँ तक यह खबर पहुंचती है लोगों को उद्वेलित, आक्रोशित करने के साथ ही डरा भी देता है। समाज एक आत्मावलोकन की स्थिति में आ जाता है और उसकी प्रतिक्रिया सरकार, कानून और तंत्र के खिलाफ आक्रामक हो जाती है जब कि सबको यह पता है कि अपराध और दंड की अपनी गति है, तथा वह अपने नियम और कायदों से चलता है।
समाज की जागरूकता आवश्यक –
हम सब निर्भया कांड के परिणाम से इसका अंदाजा लगा सकते हैं । यौन उत्पीड़न, छेड़छाड़ या बलात्कार जैसे अपराध की मनोवृत्ति सबसे अधिक अपने पास पड़ोस या घरों में जन्म लेती है ! यह पुरुष प्रधान समाज की ग्रंथि है, या विभिन्न कारणों से उत्पन्न यौन कुंठाओ का असर, या कहें कि संचार माध्यम जैसे अश्लील फिल्म, अश्लील साहित्य का दुष्प्रभाव या सबकी अपनी अपनी दृष्टिबोध, या इन सबका मिलाजुला रूप ! यह स्पष्ट रूप से तो नहीं कहा जा सकता है पर जब एनसीआरबी के आंकडो को देखा गया तो यह सामने आया कि, ऐसी घटनाओं में अधिकतर अभियुक्त या अपराधी पास पड़ोस या जानपहचान वाले ही होते हैं। बलात्कार के 93.1% मामलों में आरोपित की पीड़ित से पहले से जान पहचान पायी गयी थी।
मनोबल बढ़ाने की आवश्यकता –
जिन मामलों में आरोप पत्र दिए गए उनका प्रतिशत, 32.2% था और 93.6% बच्चों के विरुद्ध यौन हिंसा के मामलों में अपराधी की उन बच्चों से पहले से ही जान पहचान थी। इसके बावजूद ये पूर्ण आंकड़े नहीं है क्योंकि 99.1% यौन हिंसा की घटनाओं की रिपोर्टिंग ही समाज और परिवार के डर और लोक-लाज के भय से नहीं होती है। ऐसे में हमें समाज को जागरूक करने और एहसास दिलाने की जरूरत है कि शर्म और मुँह छुपाने की जरूरत अपराधी को है पीड़ित को नहीं !
परिस्थितियों का अवलोकन –
पीड़ित और उसके परिवार का मनोबल बढ़ाना चाहिए तथा पुलिस, जनता और न्यायपालिका को पीड़ित से सहानुभूति रखनी चाहिए और अपराधी के परिवारों को यह मन्थन करना चाहिये कि वह कौन सी परिस्थिति थी जिसमे उनके बच्चे ने इतना घृणित अपराध कर डाला ! साथ ही हमें अगर इससे अपने बच्चों को बचाना है तो अब समय आ गया है कि ऐसे माहौल में हमें यह गंभीरता से अमल में लाना होगा कि हमारे बच्चे अगर गलत राह अपनाते हैं या हमारी बेटी की जिससे मित्रता है वह व्यक्ति भरोसे के लायक़ नहीं है, तब भी हमारा अपने बच्चों के साथ आपस का संबाद बना रहे और हर हाल में हमारी बेटी घर में बराबरी महसूस करे, पराई नहीं ताकि अपनी सारी बातें एक दोस्त की तरह हमें बता सके छुपाये नहीं !
अगर कहीं जाये तो बेझिझक अपनी लोकेशन बता सके साथ ही वह बिना डरे अपने दोस्तों के बारे में बता सके ताकि किसी विकट परिस्थिति में जब उसे ज़रूरत हो समय रहते वहां पंहुचा जा सके । हमें अपनी बेटियों को जिनसे बचना है उन्हें क्या सिखाया जाय ? समाज मे महिलाएं हो या पुरूष अलग थलग नहीं रह सकते हैं। वे आपस मे मिलेंगे ही ! अपने काम काज की जगहों पर, रेल बस और हाट बाजार और अन्य सार्वजनिक जगहों पर !
दोनों को ही एक दूसरे के बारे में क्या सोच रखनी है, मित्रता की क्या सीमा रेखा हो, उस सीमारेखा के उल्लंघन का क्या परिणाम हो सकता है, यह न केवल लड़कियों को ही समझाना होगा बल्कि लड़को को भी यह सीख देनी होगी।
बेटी बेटे में दोयम दर्जे का व्यवहार क्यों ? –
हम हमेशा लड़कियों को तो सीख देते हैं कि, समय पर घर से निकलो और समय पर वापस आओ, चुस्त कपड़े न पहनो दुपट्टा ले लो आदि, यह करो या यह न करो की एक लंबी सूची भरी आचार संहिता बेटियों को थमा देते हैं ! पर बेटों के बारे में शायद इतने अधिक संवेदनशील होकर हम कोई आचार संहिता उनके लिए नहीं बनाते हैं क्योंकि वह घर का चिराग जो ठहरा और इन्ही भेद-भाव से बेटियां अक्सर खीज जाती हैं तथा इन सारे उपदेशों के कारण उन्हें लगता है कि वे तो कोई अपराध कर नहीं रही है, और जो अपराध का जिम्मेदार है वह न आचार संहिता से बंधा है और न ही उसे उपदेश सुनना पड़ रहा है। क्यों यह दोयम दर्जे का व्यवहार उनके साथ होता है ?
बेटियों के साथ बेटों की भी कॉउंसलिंग आवश्यक –
हमें यह गंभीरता से सोचना चाहिये कि पारिवारिक परामर्श या काउंसिलिंग अगर बेटियों के लिये जरूरी है तो वह बेटों के लिए भी उतनी ही जरूरी है ताकि उन्हें अपने अधिकारों के साथ कर्तव्यों का भी भान हो सके और सही गलत का फर्क मालूम हो सके और क़ानून की जानकारी हो सके ।
निर्भया कांड –
हमें याद होगा कि दिल्ली में हुई एक नृशंस घटना ने दिल्ली ही नही पूरे देश को हिला दिया था, जिसे हम निर्भया कांड के नाम से जानते हैं जिसने पूरे अवाम को झकझोर कर रख दिया था। कुछ दरिंदों ने नृशंसता की सीमा को पार कर के इंसानियत को तार-तार कर दिया था ।
16 दिसंबर, 2012 की रात ने पूरे देश को हिला दिया था। उस रात 9:30 बजे निर्भया के साथ चलती बस में दरिंदगी हुई, उसका सामूहिक बलात्कार करने के बाद उन्होंने लड़की को मरी हुई समझ कर झाड़ियों में फेंक दिया। इस घंटना को अंजाम देने के लिए बलात्कारियों ने हैवानियत की सारी हदें पार कर दी। उस दिन उन्होंने एक होनहार लड़की जो डॉक्टर बनने के सपने देख रहीं थी, उसकी जिंदगी और इज्जत को तार-तार कर दिया था।
आईपीसी की धारा 354 –
इस घटना के बाद सड़क से लेकर संसद तक निर्भया को इंसाफ दिलाने के लिए आम से लेकर खास, सब एक जुट, एक साथ खड़े नजर आये थे और पहली बार पूरा देश एक साथ एक जुट होकर इंसाफ़ और जागरूकता के साथ साथ इस घिनौने अपराध के खिलाफ सड़कों पर उतर आया था । कैंडिल मार्च के साथ ही कई जगह तो हिंसक प्रदर्शन भी हुये और उसके बाद रेप के कानूनों में कई तरह के बदलाव भी किए गए। ( नए कानून के तहत छेड़छाड़ के मामलों को नए सिरे से परिभाषित किया गया है।
इसके तहत आईपीसी की धारा-354 को कई सब सेक्शन में रखा गया जैसे 354 ए के तहत प्रावधान है कि सेक्सुअल नेचर का कॉन्टैक्ट करना, सेक्सुअल फेवर मांगना आदि छेड़छाड़ के दायरे में आएगा। इसमें दोषी पाए जाने पर अधिकतम 3 साल तक कैद की सजा का प्रावधान है ! अगर कोई शख्स किसी महिला पर सेक्सुअल कॉमेंट करता है तो एक साल तक कैद की सजा !
354 बी के तहत अगर कोई शख्स महिला की इज्जत के साथ खेलने के लिए जबर्दस्ती करता है या फिर उसके कपड़े उतारता है या इसके लिए मजबूर करता है तो 3 साल से लेकर 7 साल तक कैद की सजा !
धारा सी के तहत प्रावधान है कि अगर कोई शख्स किसी महिला के प्राइवेट ऐक्ट की तस्वीर लेता है और उसे लोगों में फैलाता है तो ऐसे मामले में एक साल से 3 साल तक की सजा का प्रावधान है।
अगर दोबारा ऐसी हरकत करता है तो 3 साल से 7 साल तक कैद की सजा ! और इसी धारा के डी के तहत प्रावधान है कि अगर कोई शख्स किसी महिला का जबरन पीछा करता है या कॉन्टैक्ट करने की कोशिश करता है तो ऐसे मामले में दोषी पाए जाने पर 3 साल तक कैद की सजा !
घटनाओं की पुनरावृत्ति –
परन्तु यह एक विडम्बना ही है कि निर्भया के बाद भी इससे मिलती जुलती घटनाएं थमी नहीं जैसे
कठुआ में 10 जनवरी को 8 साल की बच्ची आसिफा लापता हो गई थी। आसिफा के पिता ने 12 जनवरी को हीरानगर थाने में शिकायत दर्ज करवाई। 17 जनवरी को आसिफा की लाश जंगल में मिली। बच्ची के साथ रेप करने के लिए उसको नशीली दवाएं दी गई थी। इस केस में अभी तक 8 लोगों को गिरफ्तार कर किया गया है।
उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में 16 वर्षीय नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार किया गया। पिछले साल जून के महीने में पीड़ित लडकी एक दिन आचानक घर ले लापता हो गई। परिवार वालों ने इसकी शिकायत नजदीकी पुलिस थाने में करवाई। शिकायत के नौ दिन बाद लड़की औरेंया जिले के एक गांव में मिली जिसके बाद उसे उन्नाव लाया गया। 16 वर्षीय लड़की के साथ ही इस दर्दनाक घटना ने सभी को अंदर तक झिंझोड़ कर रख दिया था।
पूरे देश मे ही ऐसी घटनाएं –
6 जुलाई को कोटखाई के दांदी जंगल में हलाइला गांव के पास दसवीं की छात्रा गुड़िया के साथ स्कूल जाते समय सामुहिक बलात्कार किया गया। 4 जुलाई को गुड़िया स्कूल जाने के लिए घर से निकली मगर घर वापिस नहीं पहुंची। जब वह घर नहीं पहुंची तो उसके परिजन उसे जंगल में खोजते रहे। दो दिन बाद यानि 6 जुलाई को गुड़िया की निर्वस्त्र लाश उसी जंगल में मिली।
नागपुर में 13 अगस्त 2004 को बलात्कार के एक अभियुक्त अकू यादव को 200 महिलाओं की आक्रोशित भीड़ ने पत्थर मार मार कर अदालत परिसर में ही जान से मार दिया था।
1957 में कानपुर में थाना कलक्टरगंज में एक चौकी बादशाहीनाका में एक महिला शांति के बलात्कार के आरोप में भीड़ ने चौकी घेर ली और आग लगा दी। पुलिस को गोली चलानी पड़ी।
उपसंहार –
28 नवम्बर 2019 हैदराबाद के शादनगर (तेलंगाना) में स्कूटी पंक्चर होने पर उसे जोड़कर देने का भरोसा देकर एक महिला पशु चिकित्सक डॉ रेड्डी की हत्या कर बाद में लाश को जला दिया गया था । रंगारेड्डी जिले के शमशाबाद से लापता हुई महिला डॉक्टर की लाश शादनगर के निकट चटानपल्ली के पास बरामद हुई थी।………..क्रमशः

आवश्यक विषय पर महत्वपूर्ण लेखन किया है आपने! हम सबको मिलकर ही ऐसे दुष्कर्म रुकवाने होंगे।